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अनुभूति में श्याम अंकुर की रचनाएँ -

गीतों में-
कौन दे गया
खेत जिगर का
चलती देखी
झेल रहा हूँ
रिश्तों के बीच
लोग यहाँ के
विश्वासों की चिड़िया
 

 

कौन दे गया

कौन दे गया -
बोल तू ,
अपने घर को आग?

स्वारथ में तू डूब रहा है
बातें करता खूब रहा है
डस लेंगे यूँ -
एक दिन,
आस्तीन के नाग।

बस्ती-बस्ती छप्पर जलते
आज धतूरे खूब अकड़ते
कागा -
रोज अलापते,
सेवा का यूँ राग।

अब दौलत में अखबार बिके
बस्ती के पहरे-दार बिके
’अंकुर‘ अपनी -
आँख से,
देख दिलों के दाग।

१ सितंबर २००८

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