कौन दे गया
कौन दे गया -
बोल तू ,
अपने घर को आग?
स्वारथ में तू डूब रहा है
बातें करता खूब रहा है
डस लेंगे यूँ -
एक दिन,
आस्तीन के नाग।
बस्ती-बस्ती छप्पर जलते
आज धतूरे खूब अकड़ते
कागा -
रोज अलापते,
सेवा का यूँ राग।
अब दौलत में अखबार बिके
बस्ती के पहरे-दार बिके
’अंकुर‘ अपनी -
आँख से,
देख दिलों के दाग।
१ सितंबर २००८
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