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सूरज का
स्वर्ण–लेख
संध्या के संग मिटा
सूरज का स्वर्ण–लेख
डूब गई सब की सब
बस्ती काले जल में,
उलझा रह गया शिखर
मंदिर का बादल में
यात्राएँ ठहर गईं
सड़कें अधरंग देख
नीड़ों में सोयी है,
अब थकान दिन भर की,
जाग रहा सिर्फ़ दिया,
आस सँजो घर भर की,
सन्नाटा बजता है,
रातों की लिए टेक
धरती का उजियारा,
हथियाया तारों ने,
गठियाये सपने सब
धूर्त औ' लबारों ने,
उफ, पिशाच–सीनों में
गड़ी नहीं किरन–मेख
१ सितंबर २००६
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