अनुभूति में
डा. रंजना गुप्ता
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
नदी बहती है
बौने होते गीत
ये औरतें
वक्त की आहट
गीतों में-
पीर है ठहरी
राग बसंती
वे दिन
योजना असफल
हाट और बाजार
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वे दिन
सुरमई वो धूप वाले दिन गए
रंग भीगे बादलों के दिन गए
कर्ज से भी सूद महँगा हो गया
घोंसला चिड़िया का खाली हो गया
तोतली बातों
भरे वे दिन गए
झुरमुटों के कैद थोड़ी चाँदनी
बाँसुरी में घुट रही है रागिनी
छंद के गीतों भरे
वे दिन गए
सभ्यताएँ जंगली सब हो गईं
जन्म से पहले गलतियाँ हो गईं
जो दिलासे के बचे
थे दिन गए
रोटियों से चाँद सस्ता हो गया
हरिया बचपन में ही बूढ़ा हो गया
भूख की इस आँच में
जल तन गए
खोखले सन्दर्भ जीवन के रहे
खेत फिर इस साल बोये बिन रहे
धान की फसलों
भरे वे दिन गए
२० अप्रैल २०१५
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