अनुभूति में
डा. रंजना गुप्ता
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
नदी बहती है
बौने होते गीत
ये औरतें
वक्त की आहट
गीतों में-
पीर है ठहरी
राग बसंती
वे दिन
योजना असफल
हाट और बाजार
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राग बासन्ती
फूलती सरसों कुहुकती कोयलें
आम बौराये महकती कोपलें
ऋतु बसन्ती की बजी है पैंजनी
पाँव में लिपटी मधुर सी चाशनी
ज्वार बनते
जा रहे हैं हौंसले
धूप के परचम सुनहरे हो गए
पल उनींदे रस भरे दिन हो गए
गीत गन्धा
लेखनी के फैसले
सुस्त तन की मस्त मन की आहटें
आ गया फागुन बताशे बाँटने
ढोल-ताशे
मिल रहे जैसे गले
रंग उत्सव राग धर्मी चेतना
बाँसुरी पिचकारियों की अर्चना
फिर हठी
मधुमास के शिकवे-गिले।
२० अप्रैल २०१५
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