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नदी बहती है
अहन्मन्यता के
अहंकार के पहाड़ों को
पार करती बहती है नदी
सौम्य शीतल जलधार
विरोध, अन्तर्विरोधों, बाधाओं को
ठेलती, परे धकेलती
फूटती है रसधार
निर्बाध, निरंतर
विसंगतियों, वैमनस्यताओं के
दुर्गम पठार को करती दर किनार
उत्तल उदधि के फेनिल तट
लहरो के कलरव, चञ्चल
अन्तर सी निर्मल
झर-झर बहती रहती है
नदी प्रेम की बहती है
कल-कल
छल-छल
१५ सितंबर २०१६
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