मेरे
अन्दर रहना
चेहरे से स्पष्ट होते
मन के भाव तुम्हारे
हर पल खेता
नाव नदी पर
मिलते नहीं किनारे
तोड़ समय की चुप्पी मेरे
कानों में कुछ कह दो
नीरवता की असह उदासी को
भीतर मत शह दो
मण्डप के
नीचे बैठे हैं
सहमे सपन कुँवारे
भाषाविद भी अक्षर इनके
पूरे बाँच न पाये
आदिम युग की चित्र पाण्डुलिपि
दर्पण जाँच न पाये
छाया में
प्रतिबिम्ब हजारों
टूटे साँझ - सकारे
राह नहीं मैं घर हूँ तेरा
मेरे अन्दर रहना
अपनापन दूँ कह लो मुझसे
चाहो जो भी कहना
शब्दों के
सम्बोधन पंछी
उड़ते पंख पसारे
१ फरवरी २०२३
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