अनुभूति में
रामदेव लाल ’विभोर‘
की रचनाएँ—
गीतों में-
कैसे फूल मिले
फूटा चश्मा बूढ़ी आँखें
बाज न आए बाज
भरा कंठ तक दूषित जल है
मैं घड़ी हूँ
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फूटा चश्मा बूढ़ी आँखें,
फूटा चश्मा बूढ़ी आँखे,
उँगलियाँ रही टटोल
घूम-घूम कर वही आ गयीं,
ये दुनिया है गोल
जमाना बोले तीखे बोल
झरबेरी कदली को फाड़े,
कदम-कदम पर झंडा गाड़े
लाजभरी कुटिया में घुसकर,
खिड़की देती खोल
पोला शंख बड़मुँही बोली,
वचन-मुकर जिन्नों की टोली,
तोल-तोल रत्ती-रत्ती सब,
ले मिट्टी के मोल
कालिख लगी कड़ाही बोले,
हलवाई बदरंगी घोले
सुनी-अनसुनी कर रखवाला
खड़ा बजाय ढोल
२३ जुलाई २०१२ |