अनुभूति में
रामदेव लाल ’विभोर‘
की रचनाएँ—
गीतों में-
कैसे फूल मिले
फूटा चश्मा बूढ़ी आँखें
बाज न आए बाज
भरा कंठ तक दूषित जल है
मैं घड़ी हूँ
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कैसे फूल मिले ?
सँभल-सँभल कर चले सुपथ पर,
फिर भी शूल मिले
पग-पग प्रबल प्रीति-तरूवर के,
दल-प्रतिकूल मिले
सरल, सलोनी जीवन-धारा,
सुषमा में ढाली
सजी-धजी थी जहाँ समय की
सुरभित हरियाली
कैसी करवट कर विरंचि ने,
पासा पलट दिया
धार-पार तीखी कगार के,
दोनों फूल मिले
वासंती बेला में
काली नागिन नाच गयी
पीली सरसों के वितान में,
दुखड़ा बाँच गयी
महुआरी में माहु बनकर,
दुर्दिन कूद पड़ा
अमराई की जगह अनगिनत
विटप बबूल मिले
जब अनंग ही अंगहीन है,
किस की खैर कहें
किस बेला से कहें मैत्री, किस से वैर कहें
ऋतु वसंत की अगुवानी पर,
उपवन बौराया,
शुचि गुलाब ने देखे अपने,
सपने धूल मिले
२३ जुलाई २०१२ |