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अनुभूति में राम सेंगर की रचनाएँ-

गीतों में-
एक गैल अपनी भी
किसको मगर यकीन
धज
बीजगुण
पानी है भोपाल में
रहते तो मर जाते

 

किसको मगर यकीन

कपट और माया का नंगा नाच है
किसको मगर यकीन हमारी बात में

संशय के रोगी होते तो देखते
चोर और कुत्‍ते का पहरा ध्‍यान से
यही रुदन है, फूटी नहीं विवके की
दीख रहा सब आर-पार ईमान से

दुनिया बदल गयी निष्‍पाप विचार की
जिन्‍दा रहना, रहा न अपने हाथ में

ऊँची घाटी, चढ़ तो गये गुमान में
'राम', यहाँ था, इस बस्‍ती की कीच में
जिनने खोजा, उनको बेशक मिल गया
फँसा हुआ वह दो पाटों के बीच में

चरमपंथियों के विकास की धूम है
औचक-भौचक हम अपनी औकात में

२६ सितंबर २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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