पानी है भोपाल में
भैंस कटोराताल में
हम भी क्या हैं
आधे पागल
छलका डाली पूरी छागल
अटक गई है प्यास हलक में
पानी है भोपाल में
ऊधो कहते
माधो सुनते
अपनी-अपनी तानी बुनते
बहस छिड़ी जीने मरने पर
पान दबे हैं गाल में
धींगा मस्ती
का आलम है
गुल चिराग है पगड़ी गुम है
फुदक रही है एक चिरैया
बहेलिया के जाल में
२६ सितंबर २०११ |