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प्रियतमा के गाँव में
आज फिर पुरवा चली है
प्रियतमा के गाँव में।
गीत गाती घूमती
आज फिर से चाँदनी
कैद में जो थी कभी
गूँजती वह रागिनी।
रातरानी नाचती
पहन पायल पाँव में।
मन-सुमन खिल-खिल उठे
संग-संग बयार के
लौटकर पंछी सभी
गीत गाते प्यार के।
फिर बसेरा रैन का
प्रीत की ही छाँव में।
जो मिला वो ले लिया
फूल क्या अंगार क्या
जिंदगी तो है जुआ
जीत क्या है, हार क्या।
फिर लगाने हम चले
कीमती मन दाँव में।
८ जून २०१५
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