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लगता मंदिर है
दीप जला फिर ध्वनि है लय में
लगता मंदिर है
अब शायद लोबन जलेगा
चिड़िया के घर में।
दाना पानी होम किया तब
जीवन रथ निकला
चौराहे से सही दिशा चुन
अपना पथ बदला।
हर पथ कठिन कँटीला होगा
सच तो नहीं लगा
मेरे इस अनुरागी मन ने
इसे दिया झुठला।
सभी दिशाएँ बुला रही हैं
सहज सरल मन से
अब निश्चित ही जश्न मनेगा
चिड़िया के घर में।
चिड़िया तो बस चिड़िया है
अंतर कब कर पाती
जिस घर चाहे दाना चुगती
फिर वह उड़ जाती।
सबके घर में उसे दिखे हैं
मंदिर मस्जिद ही
घर-घर जाकर उच्च स्वरों में
हरदम वह गाती।
वेद, पुरान पढ़े हैं उसने
उनमें यही लिखा
सत्य सदा ही सत्य रहेगा
चिड़िया के घर में।
८ जून २०१५
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