अनुभूति में
पं. रामप्रकाश
अनुरागी
की रचनाएँ—
गीतों में-
क्या आँसू क्या आहें
कुछ दिन और
तुम कभी वहाँ आना
मत छेड़ो मेरी नाव
हम बहुत गेय हैं
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मत छेड़ो
मेरी नाव
मत छेड़ो
मेरी नाव, मुक्त रहने दो!
मत कहो, धार में धँसने वाली है
मत कहो, भँवर में फँसने वाली है,
इस नैया की तो भैया ! नियति यही
झंझाओं में भी, हँसने वाली है.
मत छेड़ों,
इसको कथा गुप्त रहने दो !
छेड़े से तो ये, दिशा-भ्रमित होगी
इस-उत बहकर के, वृथा श्रमित होगी,
भटकी-हारी क्या, पार उतारेगी ?
बहर से भीतर, अधिक द्रवित होगी.
मत छेड़ो,
इसकी व्यथा सुप्त रहने दो !
जल में रह, जब तक, जल से ऊपर है
तब तक कोई भी, लक्ष्य न दूभर है,
जल इसमें न भरे, शुभकामना करो
ये रोज लौटती, तट छू-छूकर है.
मत छेड़ो,
इसको शिवं युक्त रहने दो !
८ अक्तूबर
२०१२ |