अनुभूति में
पं. रामप्रकाश
अनुरागी
की रचनाएँ—
गीतों में-
क्या आँसू क्या आहें
कुछ दिन और
तुम कभी वहाँ आना
मत छेड़ो मेरी नाव
हम बहुत गेय हैं
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क्या आँसू, क्या आहें
क्या आँसू, क्या आहें?
हिरनियाँ !
क्यों आँसू, क्यों आहें?
ओ री! भोली, अरी! बावली,
ये तो चारागाह नहीं,
इस वन में शकुन्तला को भी
तेरी कोई चाह नहीं
तू ही क्या, इस सघन वनी में
हम भी राह न पाएँ,
हिरनियाँ!
हम भी राह न पाएँ
यहाँ भूख से माँस न बचता
बचे प्यास से, खून नहीं
कौन यहाँ पर ऐसा, जिसके
पंजों में नाखून नहीं?
तेरी ही क्या, यहाँ सभी की
खालें खींची जाएँ!
हिरनियाँ!
खालें खींची जाएँ!
कौन तिरे, तेरी आँखों में?
या डूबे भोलेपन में?
कौन तुम्हारी रोमावलियाँ
पावन करे तपोवन में?
तू ही क्या, अब हम भी सोचें,
क्या रोएँ, क्या गाएँ?
हिरनियाँ!
क्यों रोएँ, क्यों गाएँ?
८ अक्तूबर
२०१२ |