अनुभूति में
ओम धीरज
की रचनाएँ-
गीतों में-
अलग-अलग दामों पर
कैसे कह दूँ
खबर बनाम बतकही
जन्म-दिवस बिटिया का
फेसबुक बनाम घर की खबर
साथी बोलो
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साथी बोलो!
साथी बोलो, नई धुनों का
कैसे राग रचाएँ
मोतिया बिन्द लगी आँखों से
कुछ भी सूझ न पाये।
कहने को आजाद अक्ल हैं
ताला गैर जड़ें
छूने को आकाश ललक में
जड़ से ही उखड़े
'यूरेनियम' के लिए उधारी
कब तब 'पावर’पायें।
अति प्रसिद्धि की गाड़ी भी अब
लिए जुगाड़ चले
धन-पनडुब्बी महा-जलधि का
सीना फाड़ चले
बेच गरीबी गर्वीली हम
कब तक धनिक कहाएँ।
झूठ परोसे कई बार तो
सच का स्वाद मिले
ऊँची हो फरियाद लौह की
भी बुनियाद हिले
'कन्फ्यूजन' में 'फ्यूजन' का हम
कब तक भरम चलाएँ।
८ दिसंबर २०१४ |