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छोटा है आकाश
दीवारों को
वातायन की
पल-पल रही तलाश
उँगली पकड़े-पकड़े
सपने
तन कर खड़े हुए
छप्पर के सूखे सरकण्डे
फिर से हरे हुए
यादों को
समझा तो लूँ पर
अनहोने आभास
दृश्य विरल होते
पृष्ठों के
जब-जब आँख भरी
फिर भी सहनशील पलकों की
आह नहीं उभरी
दृश्यों को
बहला तो लूँ, पर
सारे रंग उदास
जैसे ही
आनंद उर्मियाँ
लेती कुछ आकार
साथ छोड़ते पल हाथों के
हो जाते अनुदार
बाँहों को
फैला तो लूँ, पर
छोटा है आकाश
२३ मई २०११ |