आँधियाँ आने को
हैं
सुनो!
पत्ते खड़खड़ाये
आँधियाँ आने को हैं
पूछ कर किस्सा सुनहरा
उठ गया आयोग बहरा
मंत्रणा के बीच गुजरा
एक भी अक्षर न ठहरा
मस्तकों पर बल खिंचे हैं
मुट्ठियों के तल भिंचे हैं
अंतत: है एक लम्बे
मौन की बस
जी हुजूरी
काठ होते स्वर अचानक
खीझकर कुछ बड़बड़ाये
आँधियाँ आने को हैं
बेटियाँ हैं वर नहीं है
श्याम को नेकर नहीं है
योग से संयोग से भी
बस गुजर है घर नहीं है
बज चुके हैं ढोल-ताशे
देर तक बीते तमाशे
रंग भरती यवनिका में
पटकथा अब भी
अधूरी
पेड़ के खोखर में उद्धत
बाज ने पर फड़फड़ाये
आँधियाँ आने को हैं
२३ मई २०११ |