ठहरी हुई नदी
बूँद-बूँद विषकुंड हो गई
ठहरी हुई नदी।
अपनी दुविधा
दिशाहीनता
किससे नदी कहे?
कौन भगीरथ
जिसकी उँगली थामे
और बहे?
रोज़ कुटिल कोलाहल
सुन-सुन
बहरी हुई नदी।
बँधुआ समय
कूट पुरुषों की
भाषा बोल रहा,
इत्र लगे हाथों से
जल में गंधक घोल रहा!
अपनी ही राहों में
घुल-घुल
गहरी हुई नदी।
९ नवंबर २००९
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