अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में नीलम श्रीवास्तव की रचनाएँ

गीतों में-
गाँठ सवालों की

गुमसुम गौरैया
ठंडा पानी
ठहरी हुई नदी
ढूँढ रहे इस घर में 

 

 



 

`

ढूँढ़ रहे इस घर में

कुछ माटी की कोठरियाँ
कुछ छानी छप्पर था
चीज़ें कम थीं पर अंतर से
भरा पुरा घर था

हुक्मशाह पुरिखाँ घर भर की
चिंता ढोते थे
तपन बढ़े तो सबके सिर की
छतरी होते थे
पुरखिन का मन
ज्यों ममता का मानसरोवर था

कठिन परिश्रम था
टीसें थीं नग्न अभावों की
किंतु न टूटी डोर
कभी आंतरिक लगावों की
जलता रहा
निरंतर दीपक ढ़ाई आखर का

लोकरंग से पगे गीत
पर्वों की मस्ती थी
घर क्या था
परजा-परिजन संग पूरी बस्ती थी
अपने से ज़्यादा
पाहुन का होता आदर था

अब ईंटों के पुख्ता घर में हम एकाकी हैं
भावहीन रिश्तों के बस संबोधन बाकी हैं

१ जुलाई २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter