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कितने घर हैं
सारी धरा हमारी है पर
यहाँ हमारे कितने घर हैं?
तैर रहे हैं किंतु स्वयं की
धारा से ही कटे हुए हैं
अगुआनी करने वाले भी
खुद खेमों में बँटे हुए हैं
चतुर-सयाने, आगे चलते
पीछे वाले सब अनुचर हैं।
विस्थापित करके जनजन को
निर्जन टापू पर बिठलाते
बसे बसाए नीड़ तोड़कर
एक नया फिर नगर बसाते
पिंजरे में फँस जाते पंछी
पर बहेलिये सब बाहर हैं।
मिथ्यावादी दीवारों से
महल दुमहले सटे हुए हैं
आश्वासन के सभी सरोवर
जलकुम्भी से पटे हुए हैं
चिकनी राहें गढ़ने वाले
खुद पथरीली सड़कों पर हैं
१ दिसंबर २०१६
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