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ऐसी माचिस
लाएँ कहाँ से
रंगबिरंगे मर्तबान में-
संयम, बोता रहा कुहासे
बाजारों में उछल रहे हैं
सूचकांक के कंकड़ जितने
अन्तर्सम्बन्धों में आए
आज गिरावट के क्षण उतने
जाने कैसे फिर भी राही-
गाता रहता बारहमासे
काँस वनो की गहन उदासी
रेतीली आँखों तक पसरी
आँचल में हैं अश्रु कथाएँ
काँधे पर जड़ता की गठरी
सूरज के आवारा छौने-
फिर लौटे हैं भूखे प्यासे
मादक द्रव्य पिये सोया है
मौसम ताने हुए रजाई
सिता गई है एक-एक कर
परिवर्तन की दिया सलाई
और क्रांति की तीली सुलगे-
ऐसी माचिस लाएँ कहा से
१ दिसंबर २०१६
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