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जितने भी अफसर
जितने भी अफसर होंगे, सबके मकान बन जाएँगे।
नीति समायोजन की रखिये प्रावधान बन जाएँगे।
अंधों के निर्वाचन में तो जीतेंगे बस काने ही
लँगड़े-लूले, गूँगे-बहरे, सब प्रधान बन जाएँगे।
समारोह, उत्सव, आयोजन, चर्चाएँ, आमोद-प्रमोद
बैठक का हासिल अब केवल खान-पान बन जाएँगे।
जंगी लगी इक कील पे लटकी हुई तालिका कहती है
गलत भले हों यही आँकड़े, कीर्तिमान बन जाएँगे।
चल चित्रों के खलनायक आदर्श हो गए इस युग में
फिल्मों के अश्लील गीत क्या देशगान बन जाएँगे।
खुद अपना विज्ञापन कर लो, खुब अपनी तारीफ करो
जिसमें जितना ‘कौशल’ होगा सब महान
बन जाएँगे।
१ दिसंबर
२०१५
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