अनुभूति में
मधुसूदन साहा की रचनाएँ-
गीतों में-
आ गया दरपन लिए
किसे पुकारें
चुभते हैं पिन
छंदों की अंजलि
दीवारें
पसरा शैवाल
शहरी सौगात
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शहरी सौगात
बाहर नहीं निकलना बेटा
घर से रात-बिरात।
सुना, शहर में दंगे होते
करते सब तकरार,
रोज़ सबरे आकर सबसे
कह जाता अख़बार,
सोच-समझकर चलना बेटा
मत करना उत्पात।
कभी ज़हर हो हवा निकलती
कभी आग ही आग,
सड़कों पर आतंक घूमता
मचला भागम-भाग,
कभी उलझना नहीं किसी से
लड़ना मत बेबात।
सोती नहीं शहर की रातें
लेती नहीं विराम,
कब होती है सुबह सुनहली
कब होती है शाम,
जाने कब दे जाए कोई
अनजाने आघात।
जाता है तू गाँव ओढ़कर
रखना इसे सँभाल,
चाहेंगे सब तुझ से करना
इस पर कई सवाल,
सबके अलग-अलग होते हैं
सोच-समझ-ख़्यालात।
जाता है तू जैसा वैसा
आना फिर से गाँव,
मेरी कड़ी धूप की ख़ातिर
तू ही है बस छाँव,
अपने साथ न हरगिज़ लाना
तू शहरी सौग़ात।
१४ दिसंबर २००९ |