अनुभूति में
मधुसूदन साहा की रचनाएँ-
गीतों में-
आ गया दरपन लिए
किसे पुकारें
चुभते हैं पिन
छंदों की अंजलि
दीवारें
पसरा शैवाल
शहरी सौगात
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दीवारें
पहले दीवारों को केवल
कान हुआ करते थे,
अब दीवारें तलवारों का
काम किया करती हैं।
रोज़ काटतीं नाते-रिश्ते
फसलें बो अनबन की,
साँसें घुटतीं विश्वासों की
हर कमसिन धडकन की,
हले लोगों को औरों पर
होती थीं शंकाएँ
अब अपने ही घर में हरदम
ये नफ़रत भरती हैं।
आँगन-आँगन संबंधों के
बीच खड़ी हो जातीं,
तुतली-तुतली बातों को भी
कभी नहीं सुन पातीं,
पहले अपने पास सभी को
घंटों बिठलाती थीं,
अब छप्पर पर खुद अंगारे
चुप से धरती हैं।
जगह-जगह पर अमन-चैन की
वंशी नित बजती थी,
नदी किनारे हवा बैठकर
राम-नाम भजती थी,
पहले हर दरवाज़े पर थी
बाट जोहती तुलसी
अब बाडों में नागफनी की
चुभन प्राण हरती हैं।
१४ दिसंबर २००९ |