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अनुभूति में मधुसूदन साहा की रचनाएँ-

गीतों में-
आ गया दरपन लिए
किसे पुकारें
चुभते हैं पिन
छंदों की अंजलि
दीवारें
पसरा शैवाल
शहरी सौगात

 

 

  किसे पुकारें?

जितने फन
उतनी फुफकारें,
इस संकट में किसे पुकारें?

सभी
यहाँ हैं जहर उगलते,
बात-बात में रोज़ उबलते,
जितने सर उतनी तलवारें,
इस संकट में किसे पुकारें?

कौन
यहाँ है खेवनहारा,
कौन लगाए हमें किनारा,
टूट गई सबकी पतवारें,
इस संकट में किसे पुकारें?

सभी
खून में सने हुए हैं,
बिना वजह ही तने हुए हैं,
गूँज रही सबकी ललकारें,
इस संकट में किसे पुकारें?

१४ दिसंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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