अनुभूति में
लक्ष्मी नारायण गुप्ता की
रचनाएँ-
गीतों में-
ऐसे दुर्दिन आन पड़े हैं
क्या हक मुझको
जीना है बस ऐसे वैसे
दिन दिन बढ़ते भ्रष्टाचारी
हम भी कैसे पागल जैसे
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दिन दिन बढ़ते भ्रष्टाचारी
दिन दिन बढ़ते भ्रष्टाचारी
सभी ओर कालाबाजारी
क्या करेंगीं योजनाएँ जब
खोटी होगी नीयत हमारी
स्व-समष्टि का भाव चाहिए
व्यष्टि का बलिदान चाहिए
शिक्षा दिशाहीन दूषित है
पैसे से विद्या पोषित है
स्वार्थ साधना सभी ओर है
गति बाधित है, कसर कोर है
मूल्यों की दरकार चाहिए
सुशासन सरकार चाहिए
धर्म अधर्मी समझ परे हैं
राजकाज भी अहम भरे हैं
मेरी तेरी ध्वनि गूँजती
दानवता हर ओर झूमती
धर्म जागरण कर्म चाहिए
राष्ट्र धर्म का मर्म चाहिए
जन्मजात राष्ट्रहित साधक
सत्य शिवम् सुन्दर आराधक
खोजें लाख मिलेगे दो-दस
दूर विश्व गुरू बनने का यश
सत, रज, गुण पर ध्यान चाहिए
मानव का निर्माण चाहिए
२ सितंबर २०१३
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