अनुभूति में
लक्ष्मी नारायण गुप्ता की
रचनाएँ-
गीतों में-
ऐसे दुर्दिन आन पड़े हैं
क्या हक मुझको
जीना है बस ऐसे वैसे
दिन दिन बढ़ते भ्रष्टाचारी
हम भी कैसे पागल जैसे
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ऐसे दुर्दिन
ऐसे दुर्दिन आन पड़े हैं
व्यथा मिटाए कौन
घर में मेरे विषधर बिच्छू
कोने-कोने में जीवित हैं
राज्य-राज्य में टाँग खिंचाई
व्यक्ति-व्यक्ति माँगे भरपाई
विश्व शांति का दम भरने का
जोश दिखाए कौन
मजबूती से खड़े नहीं हम
भीख-कर्ज नें लूटा दमखम
चीन चुराता धरती मेरी
मानचित्र में हेराफेरी
ऐसी उठापटक के चलते
लाज बचाए कौन
मैं था विवश, छद्म का मारा
करना पड़ा मान्य बँटवारा
पंचशील के उड़ा कबूतर
जग में फिर भी रहा बिचारा
ऐसी बीती विकट घड़ी में
धैर्य बँधाए कौन
वैदिक गणित, धर्म विज्ञान
अपने संतों की पहचान
अपनी संस्कृति परम्पराएँ
अपने नेता स्वयं छुपाएँ
स्वाभिमान खोती पीढ़ी में
आस जगाए कौन
२ सितंबर २०१३
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