अनुभूति में
कुमार दिनेश प्रियमन
की रचनाएँ-
गीतों में-
जब तक अपने
स्वप्न रहेंगे
नई सुबह के उगते सूरज
नदी की मछलियाँ हैं
हम मानव बम बन बैठे |
|
हम मानव बम बन
बैठे
आदम से मानव की यात्रा-
में, हम मानव-बम
बन बैठे।
कैसी हैं ये आकुलताएँ
जिनके हल में
हों हत्याएँ
अपनी ही वर्चस्व कामना-
में, हम भस्मासुर
बन जाएँ
कैसा यह बेहद पागलपन
खुद से आज विषम
बन बैठे।
कैसी यह हत्यारी
आतंकी
अपनी ही छाया
कहाँ गयी सपनों
की खेती, जंगल
नागफनी हरियाया
मुट्ठी में सूरज भरने की
जिद में हम खुद तम
बन बैठे।
५ अगस्त
२०१३
|