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अनुभूति में कृष्ण बक्षी की रचनाएँ-

गीतों में-
कल की तरह
घर के बारे में
पिता हमारे
ये बिजली के तार
सपना

 

सपना

अच्छा हो या बुरा, बन्धु रे!
सपना तो सपना होता है।

क़दम-क़दम पर, पैरों के
तलुवों में चुभते पिन।
माला के मनकों जैसे
संघर्षों वाले दिन

एक-एक कर गुरिया
जिस का जपना होता है।

कोई शक्ल नहीं बनती
मिट्टी गुँथ जाने से
लेती हैं आकार मूरतें
चाक घुमाने से

कुन्दन बन जाने से
पहले तपना होता है।

धीरे-धीरे रात काट
पाती है घना अँधेरा
इंतज़ार के बाद कहीं
आता है, सुर्ख़ सवेरा।

कई पीढ़ियों को जुगनू-
की खपना होता है।

१ मई २०१७

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