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अनुभूति में किशन सरोज की रचनाएँ-

गीतों में-
कसमसाई देह
तुम निश्चिन्त रहना
नदिया किनारे
नींद सुख की
बड़ा आश्चर्य है

बाँह फैलाए खड़े

 

 

बाँह फैलाए खड़े

बाँह फैलाए खड़े,
निरुपाय, तट के वृक्ष हम
ओ नदी! दो चार पल, ठहरो हमारे पास भी।

चाँद को छाती लगा
फिर सो गया नीलाभ जल
जागता मन के अँधेरों में
घिरा निर्जन महल

और इस निर्जन महल के
एक सूने कक्ष हम
ओ भटकते जुगनुओ! उतरो हमारे पास भी।

मोह में आकाश के
हम जुड़ न पाए नीड़ से
ले न पाए हम प्रशंसा-पत्र
कोई भीड़ से

अश्रु की उजड़ी सभा के,
अनसुने अध्यक्ष हम
ओ कमल की पंखुरी! बिखरो हमारे पास भी।

लेखनी को हम बनाए
गीतवंती बाँसुरी
ढूँढते परमाणुओं की
धुंध में अलकापुरी

अग्नि-घाटी में भटकते,
एक शापित यक्ष हम
ओ जलदकेशी प्रिये! सँवरो हमारे पास भी।

२५ नवंबर २०१३

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