अनुभूति में
जय प्रकाश नायक
की रचनाएँ-
गीतों में-
अपनी नस्ल पसीने वाली
कैसे धीर धरे मन नाविक
नए गुलामी के खतरे हैं
मेरे सिर इल्जाम
हम कहाँ जाएँ |
|
नए गुलामी के
खतरे
नए गुलामी के खतरे हैं
नए-नए चारे
बाँध दिये है राजतंत्र ने
दस्तकार के हाथ
फिर भी ये तुर्रा कि वे हैं
मजदूरों के साथ
हम बातों की खेती वाले
छद्म लिए नारे
एक वीरप्पन, छप्पन माँगें
दो-दो थी सरकार
सियासती पर्दे पर उभरे
कई नए किरदार
अपनी पकड़-भरोसे ‘मुच्छन’
नीबू-सा गारे
लहूलुहान स्वर्ग की वादी
वर्षों के नासूर
तीर्थयात्रियों के हत्यारे
हैं गिरफ्त से दूर
दुश्मन से भिड़ने वाले हम
अपनों से हारे।
१० फरवरी २०१४
|