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अनुभूति में जय प्रकाश नायक की रचनाएँ-

गीतों में-
अपनी नस्ल पसीने वाली
कैसे धीर धरे मन नाविक
नए गुलामी के खतरे हैं
मेरे सिर इल्जाम
हम कहाँ जाएँ

 

मेरे सिर इल्जाम

सारी कीर्ति उन्हीं के माथे
मेरे सिर इल्जाम लगे

मैंने अपने को घिस-घिसकर
चंदन की देह किया
मैं साधक यायावर ठहरा
सिर्फ साध्य से नेह किया
निर्वासन ही नियति हो गई
मैं सीता, वे राम लगे

मैं हर बार छला जाता हूँ
भोला हूँ वनवासी-सा
फिर कोई भरमाने आया
रूप धरे सन्यासी-सा
हैं असंख्य लक्ष्मण-रेखाएँ
उलझन आठों याम लगे

बार-बार की अग्नि-परीक्षा
मुझे कहाँ ले जाएगी
धरती की बेटी धरती की
गोदी में सुख पाएगी
किसी भीष्म की शर-शैय्या ही
जैसे चारों धाम लगे।

१० फरवरी २०१४

 

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