अनुभूति में
जय प्रकाश नायक
की रचनाएँ-
गीतों में-
अपनी नस्ल पसीने वाली
कैसे धीर धरे मन नाविक
नए गुलामी के खतरे हैं
मेरे सिर इल्जाम
हम कहाँ जाएँ |
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हम कहाँ जाएँ
हम कहाँ जाएँ कोई फरियाद लेकर
मन नहीं करता
दो हैं हमारे विपक्षी दल
दो-के-दोनों ही अनाड़ी हैं
गर्म मुद्दों की नई चिंता
दोनों ही हारे जुआरी हैं
फिर वही टोटका पुराना है
जी नहीं भरता
एकजुटता की जरूरत थी
सिर-फुटव्वल ही दोबारा है
मसअले अब भी वही उलझे
सिर्फ नारों का सहारा है
रक्तजीवी इन पिशाचों का
तन नहीं मरता
१० फरवरी २०१४
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