अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जय प्रकाश नायक की रचनाएँ-

गीतों में-
अपनी नस्ल पसीने वाली
कैसे धीर धरे मन नाविक
नए गुलामी के खतरे हैं
मेरे सिर इल्जाम
हम कहाँ जाएँ

 

हम कहाँ जाएँ

हम कहाँ जाएँ कोई फरियाद लेकर
मन नहीं करता

दो हैं हमारे विपक्षी दल
दो-के-दोनों ही अनाड़ी हैं
गर्म मुद्दों की नई चिंता
दोनों ही हारे जुआरी हैं
फिर वही टोटका पुराना है
जी नहीं भरता

एकजुटता की जरूरत थी
सिर-फुटव्वल ही दोबारा है
मसअले अब भी वही उलझे
सिर्फ नारों का सहारा है
रक्तजीवी इन पिशाचों का
तन नहीं मरता

१० फरवरी २०१४

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter