अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जगत प्रकाश चतुर्वेदी की रचनाएँ-

गीतों में-
आएगा कुछ बादल जैसा
जलती हुई कोई नदी
वृक्ष हैं किनारों के
सूर्य की पाती

  सूर्य की पाती

एक आँख में दुख है
एक आँख में सुख है
कौन अश्रु पोंछूँ मैं
कौन अश्रु रहने दूँ?

एक ओर सागर तल
एक ओर गंगाजल
कौन लहर रोकूँ मैं
कौन लहर बहने दूँ?

एक हाथ गरल भरे
एक हाथ अमृत झरे
मीरा-मन कर लूँ या
दंश उसे सहने दूँ?

कहीं दिखे संझवाती
कहीं सूर्य की पाती
कौन दिया द्वार धरूँ
किसे दूर रहने दूँ?

ईशान तट कुछ बोले
वंशीवट कुछ बोले
किस-किस को बरजूँ मैं
किस-किस को कहने दूँ?

मैं तन का अधिवासी
पर मन का संन्यासी
पर्णकुटी छोडूँ या
राजमहल ढहने दूँ?

१६ नवंबर २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter