सूर्य की पाती
एक आँख में दुख है
एक आँख में सुख है
कौन अश्रु पोंछूँ मैं
कौन अश्रु रहने दूँ?
एक ओर सागर तल
एक ओर गंगाजल
कौन लहर रोकूँ मैं
कौन लहर बहने दूँ?
एक हाथ गरल भरे
एक हाथ अमृत झरे
मीरा-मन कर लूँ या
दंश उसे सहने दूँ?
कहीं दिखे संझवाती
कहीं सूर्य की पाती
कौन दिया द्वार धरूँ
किसे दूर रहने दूँ?
ईशान तट कुछ बोले
वंशीवट कुछ बोले
किस-किस को बरजूँ मैं
किस-किस को कहने दूँ?
मैं तन का अधिवासी
पर मन का संन्यासी
पर्णकुटी छोडूँ या
राजमहल ढहने दूँ?
१६ नवंबर २००९ |