धूप दिन
फिर
हृदय को धूप दिन
भाने लगे
धुंध
शिखरों से लिपट-
आलाप भरती है
घाटियों में
शाम भजनों-सी
उतरती है
गाँव
गलियों के अधर
गाने लगे
फिर
हृदय को धूप दिन
भाने लगे
मौन
किस्सों से भरे-
भुतहा महल, जर्जर किले
दूर जाती
दृष्टियों
पगडंडियों के सिलसिले
दृश्य
जल में डूब
उतराने लगे
फिर
हृदय को धूप दिन
भाने लगे
२४
दिसंबर २००५ |