बौर आए
देखिए तो
किस कदर फिर
आम-अमियों बौर आए।
धूप पीली
चिट्ठियाँ
घर-आँगनों में
डाल हँसती-गुनगुनाती
है वनों में
पास
कलियों
फूल-गंधों के
सिमट सब छोर आए।
बंदिशें
टूटी
प्रणय के रंग बदले
उम्र चढ़ती ज़िंदगी के
ढंग बदले
ठेठ घर
में
घुस हृदय के
रूप-रस के चोर आए।
१ मार्च
२००६
|