हरीश भादानी
(११ जून
१९३३-२ अक्तूबर २००९)
जन्म- ११ जून १९३३ को बीकानेर,
राजस्थान में
निधन: २ अक्तूबर २००९
कार्यक्षेत्र-
जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे भादानी ने हिन्दी
के साथ राजस्थानी भाषा को भी सँवारने का कार्य किया। राजस्थान
के विगत चालीस सालों के प्रत्येक जन आंदोलन में उन्होंने
सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। राजस्थानी और हिंदी में
उनकी हजारों कविताएँ हैं। ये कविताएँ दो दर्जन से ज्यादा
काव्य संकलनों में फैली हुई हैं। मजदूर और किसानों के जीवन
से लेकर प्रकृति और वेदों की ऋचाओं पर आधारित आधुनिक कविता
की प्रगतिशील धारा के निर्माण में उनकी महत्त्वपूर्ण
भूमिका थी। इसके अतिरिक्त हरीशजी ने राजस्थानी लोकगीतों की
धुनों पर आधारित सैंकड़ों जनगीत लिखे जो मजदूर आंदोलन में
लोकप्रिय हुए।
प्रकाशित कृतियाँ
गीत संग्रह- अधूरे गीत, सपन की गली, हंसिनी याद की, एक
उजली नज़र की सुई,सुलगते पिण्ड, नष्टो मोह, सन्नाटे के शिलाखंड
पर, एक अकेला सूरज खेले, रोटी नाम सत है, सड़कवासी राम, आज की
आँख का सिलसिला, पितृकल्प, साथ चलें हम, मैं मेरा अष्टावक्र,
क्यों करें प्रार्थना, आड़ी तानें-सीधी तानें।
भावानुवाद- 'विविध विस्मय के अंशी है' और 'सयुजा सखाया'
के नाम से दो पुस्तकों में ईशोपनिषद व संस्कृत कविताओं तथा
असवामीय सूत्र, अथर्वद, वनदेवी खंड की कविताओं का गीत रूपान्तर
प्रकाशित।
सम्पादन- १९६० से १९७४ तक
वातायन (मासिक) का संपादन तथा कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी
पत्रिका ‘कलम’ (त्रैमासिक) से भी सम्बद्ध।
सम्मान-पुरस्कार:
राजस्थान साहित्य अकादमी, मीरा प्रियदर्शिनी अकादमी,
परिवार अकादमी महाराष्ट्र, पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी,
के.के. बिड़ला फाउन्डेशन आदि।
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अनुभूति में हरीश
भादानी
की रचनाएँ—
नये गीतों में-
कोलाहल के आँगन
तो जानूँ
साँसें
साँसों की अँगुली थामे जो
सुई
गीतों में-
कोई एक हवा
टिक टिक बजती हुई घड़ी
ड्योढ़ी रोज़ शहर फिर आए
धूप सड़क की नहीं सहेली
ना घर तेरा ना घर मेरा
पीट रहा मन बन्द किवाड़े
सभी दुख दूर से गुजरे
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