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अनुभूति में ज्ञानप्रकाश आकुल की रचनाएँ—

गीतों में—
अट्टहासों में तुम्हारी चीख
आज आशंका अचानक
प्रश्न पहला धूप से है
रामभजन परदेस
सुनो तथागत!
हम शापों के अभ्यासी

 

अट्टहासों में तुम्हारी चीख

अट्टहासों में तुम्हारी चीख जब दम तोड़ देगी
तब हमारे मौन का तुमको सहज ही बोध होगा

सभ्यता की यह नदी तटबंध से आगे बढ़ी है
संस्कारों से हुए अनुबंध से आगे बढ़ी है,
वृक्ष मूल्यों के धड़ाधड़ कट नदी में गिर रहे हैं
एक पौधे का भला स्वीकार
कब अनुरोध होगा

शक्तियाँ जड़ने लगीं हैं शान्ति के मुँह पर तमाचे
निरपराधों के शवों पर झूमकर अपराध नाचे
अग्निवर्षा हो रही है सूर्य का संकेत पाकर
प्रश्न है कब बादलों को
ग्लानि होगी, क्रोध होगा

अट्टहासी गूँज कब तक बाँसुरी को यों छलेगी
अंततः इन पीढ़ियों में एक कुण्ठा जन्म लेगी,
इस हँसी से जब तुम्हारे कान बहरे हो चुकेंगे
तब हमारी मुस्कराहट पर
जगत में शोध होगा

१ दिसंबर २०१७

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