अनुभूति में
ज्ञानप्रकाश आकुल
की
रचनाएँ—
गीतों में—
अट्टहासों में तुम्हारी चीख
आज आशंका अचानक
प्रश्न पहला धूप से है
रामभजन परदेस
सुनो तथागत!
हम शापों के अभ्यासी |
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आज आशंका अचानक
आज आशंका अचानक
धारणा बनने लगी
क्या दिवाकर हो गया सचमुच निशा के पक्ष में
आज खुद मैंने सुनी सूरजमुखी की सिसकियाँ
अंधकारों की सभा से डर रहीं हैं रश्मियाँ
दृष्टि अम्बर से उतर आयी उदासी ओढ़कर
कौन मारे तीर आखिर
घोर तम के वक्ष में
प्रश्न युग के बन तिमिर रोके खड़े हैं सभ्यता
खोजता है मूर्च्छित युग बस युधिष्ठिर का पता
प्रश्न सुनकर यदि युधिष्ठिर मौन ही सोचा किये
तो भला अंतर रहा कैसे?
युधिष्ठिर यक्ष में
है बड़ी चर्चा नगर में और फैला कोप है
हों युधिष्ठिर या कि सूरज पर लगा आरोप है
लोक यह कहता दिखा है कौन जाने सत्यता
संधिपत्रों पर हुए हस्ताक्षर हैं कक्ष में
१ दिसंबर २०१७
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