अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में गीता पंडित की रचनाएँ—

नए गीतों में-
तुम बिन जग
तुम मधुर एक कल्पना से
दीप मन के साथ जलते
बीत जाए न

 

  तुम बिन जग

तुम बिन जग
है तमस भरा माटी का ढेला

रज अपनी सत्ता पहचाने
तुम से ही है वो ये जाने
अंधकार में दीप जलाकर
जीवन को दे जाते माने
देख तुम्हें
अंतर में, मन का
लगता मेला

ज्ञात नहीं कब माटी फिर से
माटी में जाकर रिल जाये
अंश तेरा जो अलग हुआ था
जाने कब तुममें मिल जाये
ज्योति - पुंज
का रूप अनोखा माटी में
आ खेला

दुख-सुख का ये कैसा जाला
मनुज फँसा 'औ जीवन हारा
भूख प्यास पीड़ा मलीनता
का नर्तन इस जग में न्यारा
हरे बने रहें
मन – उपवन, माटी ने
हँस झेला

११ जुलाई २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter