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बीत जाए न
देख तेरे नयन गीले
बीत जाए न
अनर्गल बात में पल
बाल दीपक
ओ मेरे मन ! आज चल
है भरा अवसाद से तेरा हिय पर
देख तेरे नयन गीले जग हँसेगा
बाँधकर जलधि बसा ले आज भीतर
अधरों पर स्मित का मेला फिर लगेगा
बुझ जाए ना
दीप आप जलाए चल
देख तनिक निःशब्द ढले इस क्षण में भी
ज्योति - पुंज का मेला तेरे अंदर नित
समझ ना अपने को एकाकी, हो हर्षित
मना पर्व ज्योति का जग के संग नित-नित
घट जाए न
देख मन के घट में जल,
११ जुलाई २०११ |