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अनुभूति में गीता पंडित की रचनाएँ—

नए गीतों में-
तुम बिन जग
तुम मधुर एक कल्पना से
दीप मन के साथ जलते
बीत जाए न

 


 

  बीत जाए न

देख तेरे नयन गीले
बीत जाए न
अनर्गल बात में पल
बाल दीपक
ओ मेरे मन ! आज चल

है भरा अवसाद से तेरा हिय पर
देख तेरे नयन गीले जग हँसेगा
बाँधकर जलधि बसा ले आज भीतर
अधरों पर स्मित का मेला फिर लगेगा
बु
झ जाए ना
दीप आप जलाए चल


देख तनिक निःशब्द ढले इस क्षण में भी
ज्योति - पुंज का मेला तेरे अंदर नित
समझ ना अपने को एकाकी, हो हर्षित
मना पर्व ज्योति का जग के संग नित-नित
घट जाए न
देख मन के घट में जल,


११ जुलाई २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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