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अनुभूति में बनवारीलाल खामोश की रचनाएँ-

गीतों में-
दिन
मौसम आना जी
रिश्ते
हम अपने काँटों के मारे

  मौसम आना जी !

आना जी
फूलों के मौसम !
फूलों के मौसम आना जी !

पीपल नीचे
टफ छप्पर-सी पलकों की महक रहे
सौंधी मिट्टी के नम झौंकों की
सुनवाई करके जाना जी !
फूलों के
मौसम आना जी !

बरसों-बरसों
पतझड ही में बीत गये हैं
उल्लासों के कोष भरे सब रीत गये हैं
देकर रिश्तों का ताना जी !
फूलों के
मौसम आना जी !

नये-नये
बिम्बों की छटायें चमकीली
नरम-नरम किरणों में नहायी रंगोली
अनुभूति में भर जाना जी !
फूलों के
मौसम आना जी !

२६ नवंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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