अनुभूति में
बनवारीलाल खामोश
की रचनाएँ-
गीतों में-
दिन
मौसम आना जी
रिश्ते
हम अपने काँटों के मारे
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हम अपने काँटों के
मारे हम अपने काँटों के
मारे
हम मछली हम ही मछुआरे
हम वो नदी
जो अपने भँवर में
फँसी हुई है
दुःख के रेतीले टीलों में धँसी हुई है
पीकर अपने आँसू खारे
सुबह हुई
तो बिखर चले हम भी
राहों में
शाम ढली तो लौट आये फिर सीमाओं में
चाह नगर के हम बनजारे
एक आशा
जब टूट गई, हम
आगे दौडे
अगले पल की खातिर पिछले पल को छोड़े
करते खुद अपने बँटवारे
२६ नवंबर २०१२ |