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अनुभूति में बनवारीलाल खामोश की रचनाएँ-

गीतों में-
दिन
मौसम आना जी
रिश्ते
हम अपने काँटों के मारे

  दिन

अपने आँगन
कब आया कोई त्योहारी दिन ?
सौदेबाजी करने आते हैं व्यापारी दिन

कागज पर
सर रखकर सोये
जागे कागज पर
हम सूरज के साथी
दिन भर भागे कागज पर
कागज पर बीता अपना तो
हर सरकारी दिन !

उम्मीदों का
बोझ उठाए झुककर हम चलते
जैसे बच्चों पर भारी
उनके अपने बस्ते
उँगली थामें
भूल-भूलैया में गांधारी दिन !

फूलों का मौसम
पेडों पर खुलकर आया है
बरसों से
बिछुडे साथी की यादें लाया है
सूखी घास में
फेंक गया है फिर चिंगारी दिन !

२६ नवंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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