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अनुभूति में बाबूराम शुक्ल की रचनाएँ-

गीतों में-
अंधड़ों के दौर
कैसे हो गुलमोहर सवेरा?
जहर आग
वक्त जालिम
क्षण अकेला

 

कैसे हो गुलमोहर सवेरा?

कैसे हो
गुलमोहर सवेरा?
सारा दिन
अमलतास हो?

साँझ बन गुलाल रँगे
पश्चिम की क्‍यारी।
बेला पंखुरियों पर
चम्‍पे के पाँव धार
महक चले रात
रात रानी फुलवारी
कुमुद खिले ताल का
चन्‍द्रमा मराल-सा

कंटकित कदम्‍ब-सा
सारा आकाश हो?

मुक्‍त भाव
मोहक परिवेश में
मधुप गीत गुंजारे
अंतस् के तार,
जूही की गंध भरे
साँस के बयार

कीचड़ में उगा कमल
निर्मल उल्लास हो

कुटज की जिजीविषा
बने दोपहर
ऊष्मित हर साधना
दहकता पलाश हो
नया बोध भर
महके अमराई बौर

हर सिंगार जीवन
विश्वास हो

९ मई २०११

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