अनुभूति में
अवनीश सिंह चौहान की
रचनाएँ- हाइकु में-
यात्रा
गीतों में-
खोले अपना खाता
तुम न आए
पिता
मन पतंग
मेरे लिये
रंग-गंध के गाँव में
संकलन में-
होली है-
बरसाने की होली में
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यात्रा
अनंत यात्रा
जीवन, जगत की
ढेरों पड़ाव
कालातीत
तीन काल हैं
कालातीत के लिए
वर्तमान ही
अभिलाषा
जीव मात्र में
सुख की अभिलाषा
छटे कुहासा
कलयुग
भोगी अधिक
योगी बहुत कम
कलयुग में
भाव
लेने का भाव
उससे कहीं बड़ा
देने का भाव
परमात्मा
जड़-चेतन
सबके सब रूप
परमात्मा के
प्रभुकृपा
परम पद
सदभक्त को मिले
प्रभुकृपा से
साधना
निमित्त मान
करता जो साधना
पाये आनन्द
अहंकार
स्वतंत्र सत्ता
अहंकार की नहीं
कहीं पर भी
मृत्यु
कृष्ण उवाच-
युद्ध कभी हो, न हो
मृत्यु निश्चित
लोरी
नहीं सुनाती
अब एक भी लोरी
मइया मोरी
प्रकाश-मुग्ध
प्रकाश-मुग्ध
पतंगे होते स्वाहा
सदा अग्नि में
मूढ़
मूढ़ ये कवि
लाभ का लोभ पाले
रचते काव्य
२० अप्रैल २०१५ |