अनुभूति में
अवनीश सिंह चौहान की
रचनाएँ- गीतों में-
खोले अपना खाता
तुम न आए
पिता
मन पतंग
मेरे लिये
रंग-गंध के गाँव में
|
|
खोले अपना खाता
फटे बाँस में पैर अड़ाए
खोले अपना खाता
धरती पर बारूद उगाए
बेचे घर-घर में हथियार
इसे डराए, उसे सताए
बनकर सबका तारनहार
किससे कितना लाभ कमाना
इससे उसका नाता
हुक्का-पानी बंद उसी का
जिस-जिसने ना मानी बात
हुई फजीहत जग में उसकी
और दिखी उसको औकात
करता है सब काम वही जो
मन को उसके भाता
बम में, दम में सबसे आगे
संबंधों में गुटखा-छाप
बना सरगना दुनियाभर का
'नोबिल' भी मिल जाता आप
जय-जयकार हुई है जब से
ता-ता-थैया गाता
२३ अगस्त २०१० |