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अनुभूति में अनुराग तिवारी की कविताएँ-

गीतों में-
आखिर मुझे कहाँ जाना है
दिल्ली में है सत्ता बदली
धूप
बचपन
मैं निडर हूँ

संकलन में-
सूरज- सूरज खेले आँख मिचौनी

 

आखिर मुझे कहाँ जाना है

आखिर मुझे कहाँ
जाना है।

दिन पाखी बन उड़ते जाते
मन में उलझे प्रश्न सताते
पीछे मुड़ कर जब जब देखूँ
दूर तलक बस वीराना है।
आखिर मुझे कहाँ जाना है।

दिन भर की ये आपा धापी,
लूट, झूठ औ’ छल की थाती
फिर भी मन में है अकुलाहट
कितना और कमाना है।
आखिर मुझे कहाँ जाना है।

दोपहरी है, या फिर रातें
मन बन्जारा, बहकी बातें
राह दिखा मेरे प्रियतम अब
किस विधि तुझको पाना है।
आखिर मुझे कहाँ जाना है।

१६ फरवरी २०१५

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