अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अजय तिवारी की रचनाएँ

गीतों में—
कैसे समझाएँ
खालीपन
जीवन - संध्या
धूप का टुकड़ा
सच्चाई
क्षण भर

 

कैसे समझाएँ

कैसे समझाएँ
इसी गाँव से
दूध-दही की
नदिया बहती थीं।

लोक कथाएँ और कहानी
सुनते कटती थीं रतियाँ,
अब फीकी पड़ी मिठास
कड़वाईं भोली बतियाँ।

कहते हैं कि
इसी मोड़ पर
कथकी, रसगुल्ले-सी
बुढ़िया रहती थी।

कटते जाते वृक्ष
नग्न हो रही धरती,
हम संतानों के हाथों
माँ की इज्ज़त लुटती।

कौन कहेगा
इसी पेड़ पर
एक सुनहली
चिड़िया बसती थी।

गिरता जाता नित-दिन
चारित्रिक स्तर,
उसी तरह ज्यों
भूमिगत जल का स्तर।

कैसे झुठलाएँ
‘मुन्नीबाई’,
इसी गाँव की
मुनिया होती थी।

१४ जुलाई २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter