अनुभूति में अजय
तिवारी
की रचनाएँ—
गीतों में—
कैसे समझाएँ
खालीपन
जीवन - संध्या
धूप का टुकड़ा
सच्चाई
क्षण भर
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धूप का
टुकड़ा
हे! माँ अदिति
कायल हूँ मैं तेरे
अप्रतिम स्वरूप का।
रंग-बिरंगे फूलों को
जैसे-तैसे खिलने को,
देर-सबेर ही सही मगर
आशाओं के मिलने को,
कहीं कभी मिल जाता
बरबस एक टुकड़ा
सुनहरी धूप का।
सहना पड़ता है भूख
भिखारी को जीने को,
पड़ें देखने कुत्सित चेहरे
दर्पण को जीने को,
बस दर्शन हो जाए
जी भर एक पल तेरे
मनमोहक रूप का।
सोना उठना खाना पीना
इसको ही समझा था जीना,
कुंद बुद्धि मैं, सूर्य-किरण से
अपनी कभी बनी ना।
पर कौन भला चाहे
रहना मंडूक
अँधेरे कूप का।
१४ जुलाई २०१४
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